Ballabhapura kī rūpakath̄aHindī Pracāraka Saṃsthāna, 1976 - 156 pages |
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अच्छा अपनी अब अभी अरे आज आदमी आप आपको आपने इतनी इस उस उसके उसे एक ऐसे और कर करते कह कहा कहाँ का प्रवेश कि किया किसी की की ओर कुछ के कैसे को कोई कौन क्या क्या हुआ क्यों गयी गये चाय चौधरी छंदा जरा जाता है जाने जायेगा जो ठीक तक तब तरह तुम तुम्हारे तुम्हें तो था थी थे दस दिया देखा देता दो नहीं है ने पर पवन पहले पुराना प्रस्थान फिर बस बहुत बात बाद बाबू बाहर बिना भी भीतर भूत भूपति मकान मत मनोहर माने मिस्टर मुझे मूँछ में मेरे मैं मैंने यदि यह यहाँ या रघु दा रहा था रहा है रही रहे हैं राजा बहादुर रात राय लगता है लोग लोगों वह वे श्रीनाथ संजीव सकता सब समझ समय साथ साहू से सो सौ स्वप्ना हजार हम हाँ हाथ हालदार ही हुए हूँ है कि हो गया होगा होता