एक गधे की आत्मकथा

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Hindī Pān̐keta Buksa, 1960 - 132 pages

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16
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अगर अपनी अपने अब आज आप आपको आया इस इसलिए उन उस उसकी उसके उसने उसे एक गधा और कर करते करने का काम किया किसी की की ओर कुछ के लिए केवल को कोई कोठी क्या क्यों क्योंकि गई गए गधे गधे को गया घास जब जा जी जो तक तथा तरह तुम तो था था कि थी थीं थे दिन दिया दिल्ली देखकर देखा देखिए दो धोबी नहीं नहीं है ने ने कहा पर पहले पास प्रकार फिर बड़ी बड़े बहुत बात बाद बाहर बिलकुल बोला बोली बोले भारत भी मगर मनसुखलाल मालूम मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने कहा यह यहां या रही रहे रामू रूपवती लगा लिया ले लेकिन लेडी लोग वह वहां वाले वे संगीत सकता सकते सब समय साथ सुन्दर से सेठ सौन्दर्य हम हमारे हर हां हाथ ही हुआ हुई हुए हुए कहा हूं है कि हैं हो होकर होता

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