GandhadūtamPrajñā Prakāśana, 1977 - 44 pages |
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५६ अन्य अपनी अपने आगे इव इस उनके उस उसके उसे एक ओर कर करके करता करती करते हुए करते हैं करना करने वाले कहीं का कि किं किया किसी की कृष्ण के कारण के लिए के समान के साथ को को भी कोई क्या गया घर चन्द्रमा जहाँ जाता है जाती जाते जानता जाना जाने जैसी जो तथा ताजमहल तुम तुम्हारे तुम्हें ते तो था थी दर्श दिया दूर दृष्टि देखकर दोनों द्वारा नगरी नहीं नाम ने पति पर पवित्र प्रकार प्रसिद्ध प्राप्त प्रिय फिर ब्रह्मा भी भूयो मानो मार्ग मित्र मुझे मे में में भी मेरे मैं यत्र यदि यमुना यह यहाँ या रहा रही रहे रूप लोग लोगों वह वहाँ वा वायु वाराणसी वाली वे शरद् शराब शोभा संसार सततं सा सुन्दर सुन्दरियों सुभग सूरदास से स्वयं हिन्दी भाषा ही हुआ हुई हूँ हृदय हे हे गन्ध है और हैं हो होती होने के कारण