Gīta haṃsa |
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अंतः अंतर अपने अब अव आत्म आत्मा आनंद ईश्वर उर उर में एक और करता करती करते कला कवि की कुछ के को कौन क्या क्षण गए गया गायन गीत चंद्र चिर चेतना जग जग जीवन जगत् जन जीवन का जो झंकृत तन्मय तुम तुमको तुम्हें दर्पण देह दो धरती धरा नया नयी नये नर नव नहीं निखिल निज नित नूतन पग पथ पर पावक पूर्ण प्यार प्रकाश प्राण प्राणों का प्रिय प्रीति प्रेम प्रेरित फिर फूलों बन बोध भव भाव भावों भी भीतर भू भू पर मधु मन मन के मन में मनुज मानव मुक्त मुख मुझको मुझे में में भर मेरा मेरे मैं मौन यह युग यौवन रस रहता रहा रहे रूप रोम वन वह विश्व वैभव शोभा संभव संभाषण सत्य सरल सहज सा सागर साधन सित सी सुख सूक्ष्म सृजन सृष्टि से सौन्दर्य सौरभ स्पर्श स्वप्नों स्वर स्वर्ग हंस ही हूँ हृदय है हो हों होता