Kabīra kā rahasyavāda |
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Kabīra kā rahasyavāda: Kabīra ke dārśanika vicāroṃ kā gambhīra vivecana Rāmakumāra Varmā No preview available - 1966 |
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अथवा अनंत अनुभूति अनुसार अपना अपनी अपने आत्मा इस इस प्रकार इसी ईश्वर उनके उन्होंने उस उसका उसकी उसके उसने उसमें उसी उसे ओर और परमात्मा कबीर के कभी कर करता करती है करते करने कहते हैं कहा कहै कबीर का कारण किया किसी कुछ के लिए केवल को कोई गई गया गुरु चक्र जब जा जाता है जाती जाय जिस जीवन जो ज्ञान तक तब तो था थे दिया दिव्य दोनों द्वारा नहीं नाम ने पद पर परमात्मा की पृष्ठ प्रकार प्राणायाम प्रेम प्रेम के फिर बहुत बार बिन भावना भी मन माया में मेरे मैं यदि यह यही या रहस्यवाद राम रे लिया ले वह वे शक्ति शब्द शरीर श्रात्मा संबंध संसार के सकता है सकती सकते सत्पुरुष सदैव सब समय से स्थान स्थिति हम हरि ही हुआ हुई हुए हूँ हृदय है और है कि हैं हो जाता है होकर होता है होती होने