Kahāniyam̐

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अच्छा अपनी अपने अब आँखों आगे आज आदमी आनन्द आया इस इसलिए उनकी उनके उन्हें उस उसका उसकी उसके उसने उससे उसी उसे एक ऐसा ओर और कर करता करते करने कहा का काम कारण कि वह किन्तु किया किसी की कुछ कृष्णस्वरूप के लिए को कोई क्या क्यों गयी गये घर चाय चाहता चेहरे जब जा जाती जाने जो तक तब तरह तुम तो था कि थी थीं थे दिखायी दिया दी दूर दूसरे दे देखा दो दोनों नहीं नहीं है नीचे ने पर फिर बहुत बात बाद भी मन मानो मालूम मुँह मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने यह यहाँ या रहा था रहा है रही थी रहे थे रामेश्वर रूप लगता लगा लगे लिया लेकिन लोग वह वहाँ वे व्यक्ति सकता सब साथ सामने सिर्फ़ सुशीला से स्त्री हम हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ हृदय है कि हैं हो गया होकर होता होती

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