Kavivara Paramānandadāsa aura vallabha-sampradāya

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Bhārata Prakāśana, 1963 - 348 pages

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१० अतः अथवा अनेक अन्य अपनी अपने अष्टछाप आदि इन इस इस प्रकार इसी उनका उनकी उनके उन्होंने उसे एक एवं और कमल कर करते करने कवि कवि ने कवियों कहते हैं कहा का कारण काव्य किया है की की चर्चा की है कीर्तन कुछ कृष्ण के लिए के साथ को कोई गई गोपी गोवर्धन ग्रन्थ जा जाता है जी जो तक तथा तो था थी थे दिया दृष्टि नहीं नाम नित्य पद पदों पर परन्तु परमानन्द परमानन्ददासजी ने पृ० प्रति प्रभु प्रेम फिर ब्रज ब्रह्म भक्त भक्ति भक्तों भगवान् भागवत भाव भाषा भी मन महाप्रभु में यमुना यह ये रस राधा रूप लीला वल्लभाचार्य वह वार्ता विषय वे वेद श्री श्रीकृष्ण श्रीमद्भागवत सं० सब सभी समय सागर साहित्य सूर सूरदास से सेवा स्थान स्वरूप हरि हिन्दी साहित्य ही हुआ हुई हुए है और है कि हैं हो होता है होती होते होने

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