Khela jārī, khela jārī: nāṭaka

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Lokabhāratī Prakāśana, 1985 - 81 pages

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Contents

Section 1
7
Section 2
21
Section 3
25
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अपने अब अरे आँख आगे आज आदमी रे आदमी आप इसलिए उसी ऊपर एक ओर और कभी कर करता है करते करो का कारण की कुछ के के बीच के लिए के साथ को कोई कोरस क्या क्यों खड़ा खेल जारी गए गया चमचा चाहिए जज जब जल्लाद जा जाता है जाते हैं जेलर जो ठीक तक तथा तब तुम तो था दर्शकों देता है देश दो दोनों दोस्त नहीं नहीं चलेगी नाटक नाटकों निराला नेता पर पहुँच पानी पीछे पुनः फिर बन बन्द बहुत बात बाद भाई भारतीय भारी भी मानो मुद्रा में मेरा मैं यह या युवक १ युवक को रंगमंच रहा है रहे राजा ले लेकिन लोगों वह वे सकता है सच सब सभी समवेत समाजवाद सामने सिपाही से स्वाभाविक हम हमारे हाँ हाथ हिन्दी ही हुआ हुए हूँ है और है कि हैं हो होगा होता होता है

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