Padmāvata bhāshā: yaha prasiddha kahānī Rājā Ratnasena aura Padmāvata kī haiMuṃśī Navalakiśora, 1881 - 308 pages |
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१० ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १९ २० २१ २२ २३ २४ २५ २६ अब अस आय आसमान इक इन्द्र ईश्वर एक और कमल कर करे कह कहा कहाँ का की कीन्ह कुछ के को कोइ कोई कौन गये घर चन्दन चला चाँद चाय जग जगत जनु जब जस जहाँ जाय जिव जीव जेहि जो तथा तन तब तस तुम तुर्क तेहि तो दिन दिल दीन्ह दुख देख देखा देव नयन नहि नाम निगाह पद्मावत पर परी पानी पुनि प्रेम फिर फूल बदन बहु बहुत बात बिरह भँवर भई भये भयो भा मन मह मुख में मोर यह यहि योगी रंग रतन रस रहा रहे राज राजा रात रानी रूप लाग लाल लीन्ह वह वेद शिर श्री संग सब सबै समुद्र सुख सूर्य से सो सोई सोना स्वर्ग हम हाथ हाथी हिये है हो होई होय