Padārthadharmasaṅgraha[Director, Research Institute, Varanasya[sic] Sanskrit Vishvavidyalaya, 1963 - Vaiśesịka - 848 pages |
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अगर अतः अनुमान अपने अर्थ अर्थात् अवयवों आत्मा इति इत्यादि इन दोनों इस प्रकार इसी उ० उक्त उत्पत्ति होती है उन उस उसके उसी एक ही एवं और कर करते कहते हैं का कार्य काल किन्तु किसी की उत्पत्ति की उत्पत्ति होती की तरह की प्रतीति के कारण के द्वारा के लिये के साथ केवल को कोई क्योंकि क्रिया गुण गुणों चाहिये जाता है जिस जैसे कि जो ज्ञान तु तो फिर दूसरे दो दोनों द्रव्य धर्म नहीं है नहीं होता नाम नाश न्यायकन्दली पर भी परमाणु परस्पर परिमाण पहिले पृथिवी प्र० प्रकार के प्रत्यक्ष प्रशस्तपादभाष्यम् बाद भा० भेद में भी यह या ये रहने रूप रूप से रूपादि वस्तु वस्तुओं वह वाक्य विनाश विभाग विशेष विषय वे शब्द शरीर संख्या संयोग सभी समय सम्बन्ध सिद्ध से उत्पन्न से युक्त से ही स्पर्श ही है हुये हेतु है कि हो होगा होगी होता है होती होते हैं