Pañcatantram: MitrasamprāptiḥKr̥ṣṇadāsa Akādamī, 1990 - Fables, Indic |
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अत्यन्त अत्र अथ अथवा अपने अर्थात् आप आयु आह इति भावः इति शेषः इत्यर्थः इस इस प्रकार इसके इसलिए उक्तं च उस उसके उसने कहा उसी उसे एक एव ऐसा और कर करके करता करने कर्म कहा भी गया का काम कारण कि किन्तु किया किसी की कुश के लिए के साथ को कोई क्या गए घर चाहिए जाता है जाने जैसे जो तत् तत्र तथा तथा च तस्य तु तुम ते तेन तो था दिया देखकर दोनों द्वारा धन नहीं नहीं है नाम ने कहा पक्षी पर पर भी पश्चात् पा०सू० पुरुष प्राप्त फिर बहुत भवति भाव भी गया है भोः भोजन मनुष्य मन्थरक मम मित्र में मेरे मैं यथा यदि यस्य यह यह सुनकर या यावत् लघुपतनक वह वा वाले व्यक्ति शक्ति शीघ्र सकता सभी समय सह सूर्य से हि ही हुआ हुए हूँ हे हैं हो होकर होता है होती होने