Ramābāī

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Lokabhāratī Prakāśana, 1996 - 236 pages
Based on the life of Pandita Ramabai Sarasvati, 1858-1922, social worker from Maharashtra.

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1
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14
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29
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अपनी अपने अब अमरीका आज आप आयी इन इस ईसाई धर्म उनके उन्हें उन्होंने उस उसकी उसके उसे एक ऐसा ऐसी और कभी कर करती करना करने कह कहा का काम किन्तु किया किसी की की ओर कुछ के लिए केवल को कोई क्या क्यों गया गयी गये घर चाहिये जा जाता जाने जाय जी जैसे जो तक तरह तुम तुम्हारे तू तो था थीं थे दादा दिया दी दे दो धर्म नहीं है ना ने पर परन्तु पास पुणे फिर बहुत बाई बात भाभी भी मन में मनू महाराष्ट्र माँ मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने यह यहाँ यही रमा रमाबाई रमाबाई ने रहा था रहा है रही थी रहे राधा लगी लड़कियों लिया ले लोग लोगों वह वे सब समय साड़ी साथ सिर से स्त्रियों स्त्री हम हाँ हाथ हिन्दू धर्म ही ही नहीं हुआ हुई हुए हूँ है कि हैं हो गयी होगा होता

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