Saṅgītapārijātaḥ |
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१० १२ १३ १६ १८ अथ अवरोहे आरोहे इति एवं कोमलौ क्रमात् खरैः ग ग ग ग ग म ग म प ग म म ग-मौ गग गम गायत्री गौ जगुः ज्ञेया तत्र तथा तथैव तदा तीव्रतरो तीव्रौ तु तृतीयप्रहरोत्तरम् ते द्वितीयप्रहरोत्तरम् ध ध ध नि स ध प म धध धनि नाटक नि ध प नि नि निनि निस नीनां प ध नि प प प म ग पध पधनिस पनि पप परम् पुनः भवेत् भिदा भेदाः म ग म म गरि म नि म प ध म म मग मतः मताः मध मध्ये मप मम मूर्च्छना यत्र यदा यम या योगे रि ग म रि रि रि-धौ रिंग रिगमप रिम रिरि रिस विभेदतः विष्णु वैद्यक शून्य शोभितः स रि ग स स स स-री सटीक सदा सभाष्य सरि सरि सरि सरिगम सरिस सर्वदा सस संस्कृत सा स्मृतः स्यात् स्वरः हि