संस्कृत साहित्य में सादृश्यमूलक अलंकारों का विकास

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अतः अथवा अनुप्रास अनेक अन्य अर्थ अलंकार अलङ्कार आदि आलंकारिकों आवृत्ति इन इस प्रकार इसका इसके इसी उचित नहीं उदाहरण में उपमा उपमान उपमेय उपर्युक्त उस एक एवं कमल कर करके कवि कहा कालिदास काव्य किया है किसी की की प्रतीति के अनुसार के आधार पर के कारण के द्वारा के रूप में के लिए के साथ केवल को कोई गया है जगन्नाथ जहां जा जाता है जो ज्ञान दृष्टि दो दोनों द्वितीय धर्म न होकर नहीं नहीं होता निम्नलिखित ने परन्तु पृ० पृथक् पृष्ठ प्रथम प्रयोग प्रस्तुत बात भिन्न भी भेद मत मम्मट माना मुख में सादृश्य यदि यमक यह यहां यही ये रूपक लाटानुप्रास वस्तु के वस्तुओं के वह वहां विद्यमान विषय शब्द शब्दालंकार श्लेष सकता है सम्बन्ध सादृश्य का साधर्म्य साधारणधर्म से स्पष्ट है स्वरूप हम हमें ही है और है कि है तथा है तो हैं हो होगा होता है होती होने

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