Śrīharibhaktivilāsaḥ, Volume 2Śrīgadādharagauraharipresa, 1986 - Chaitanya (Sect) Treatise, with commentaries, on Vaishnavite rituals according to Chaitanya sect. |
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अतएव अथ अथ तत्र अथवा अर्थात् इति इस प्रकार उस एक एवं और भी कर करके करता है करते हैं करना चाहिये करने पर करने से करे का कारण काल किन्तु किया की की पूजा कृत्वा कृष्ण के के द्वारा के सहित केशव को ग्रहण जागरण जो तत् तत्र तत्रैव तथा तस्य तु ते तो दर्शन दशमी दान दिन देव द्वादशी न करे नक्षत्र नमः नहीं है नाम नित्यं ने पवित्र पाप पारण पुण्य पुराण पूर्वक प्रकार प्रति प्रदान प्राप्त फल ब्रह्मा भक्ति भगवान् भवेत् भी भोजन मनुष्य मन्त्रः मास में मे में उपवास में लिखित है में वर्णित है मैं यः यत् यथा यदि यद्वा यह या ये यो योग लिखति वह वा विषय विष्णु वे व्यक्ति व्रत श्रीकृष्ण श्रीहरि के सदा सब समय सा सूर्य स्नान हि ही हूँ हे हो होकर होता है होती होते हैं होने पर