Jaina tattva samīkshā kā samādhāna

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Paṇḍita Ṭoḍaramala Smāraka Ṭrasṭa, 1987 - Jaina philosophy - 242 pages

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अन्य अपनी अपने अर्थ अवश्य आगम आत्मा आधार पर इतना इन इस इसका इसलिये इसी उक्त उपचार उपादान उस उसका उसकी उसके उसमें उसे एक ऐसा कथन कर करता है करते करना करने कर्म कहना कहा का समाधान कारण कार्य कार्य की कार्यरूप काल किन्तु किया गया है किया है की की अपेक्षा के अनुसार के कारण को कोई क्या क्योंकि क्रिया गाथा चाहिये जब जाता है जीव जो तथा तो था दो दोनों द्रव्य द्वारा नहीं है नहीं होता पक्ष पर परिणाम पर्याय पृ प्रकार प्रत्येक प्रसद्भूत प्रेरक बात बाह्य निमित्त भाव भी मात्र में मोक्ष यदि यह यहाँ यही या रूप लिखा है वस्तु वह विषय वे व्यवहार व्यवहारनय श्रागम समय समीक्षक ने सहायक साथ सिद्ध से ही सो स्पष्ट स्वभाव स्वयं स्वीकार हम हमने ही ही है हुआ हुए है और है कि है तो हैं हो जाता है होकर होता है होती होने से

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