Śrīrāmavilāpaḥ: khaṇḍakāvyam : Hindībhāṣānuvādasahitaḥ

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Śrīkr̥ṣṇagranthamālāprakāśana, 1973 - Rama (Hindu deity) - 68 pages

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अत्यन्त अन्वेषण अपना अपनी अपने अपहृत अयोध्या आज आदि आप इन इव इस प्रकार इसके उत्पन्न उन उन्हें उस उसके ऋष्यमूक एवं एष और कमल कर रहा है कर रहे करता है करते हुए करते हैं करने का काम कामदेव कार्य किन्तु किया की की तरह के तुल्य के लिए के साथ को को प्राप्त खिले हुए खूब खेद गया है गये चारों ओर जनकनन्दिनी जल जैसे जो तथा तुम तो देखकर देखो देवी द्वारा धारण नहीं ने पक्षियों पम्पा परम पर्वत पवन पश्य पुष्पों प्रिय बहुत भरत भाई भागीरथी भी मन मम मां मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं यदि यह यहाँ पर ये रमणीय रही रहे हैं राक्षस राम रूप वत्स लक्ष्मण वन में वसन्त वसन्त ऋतु वह विविध विषय वृक्ष वृक्षों वे वैसे ही शोभा सब समय सा सामने सीता सुगन्ध सुन्दर से स्थित हम ही हुआ हुई हूँ हे हो होकर होगा होता है

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