Muktibodha kā kāvya aura astitvavāda

Front Cover
Suśīlā Prakāśana, 1979 - Existentialism in literature - 126 pages
On the Hindi poetry of Gajanan Madhav Muktibodh, 1917-1964, and existentialism; a study.

From inside the book

Contents

Section 1
2
Section 2
5
Section 3
6

10 other sections not shown

Common terms and phrases

अज्ञेय अनुभव अपनी अपने अस्तित्व अस्तित्व को अस्तित्ववाद आज आत्मा आधुनिक इन इस इसलिए इसी ईश्वर उनकी उनके उन्हें उस उसका उसकी उसके उसे एक एवं ऐसा ओर कर करता है करते हैं करना करने कवि कहा का कारण काव्य किन्तु किया है किसी की तरह कुछ के प्रति के रूप में के लिए के साथ केवल को कोई क्या क्षण गया है चाँद चाँद का चेतना जब जा सकता जाता है जिन्दगी जीवन की जो तक तथा तो था थे दर्शन दिया दुनिया दृष्टि द्वारा धर्मवीर भारती नयी कविता नहीं है ने पर पृ० प्रकार फिर बात भी मन मनुष्य मनुष्य के मानव मुक्तिबोध की मृत्यु में भी मैं यथार्थ यह या रहा है रही रहे लेकिन वह विचार वे व्यक्ति शून्य संघर्ष सत्ता सत्य समाज सात सामने साहित्य से स्थिति हम ही हुआ हुई हुए हूँ है और है कि हैं हो होता है होती

Bibliographic information