Kanupriyā |
Common terms and phrases
अक्सर अगर अनन्त अपनी अपने अपने को अब अर्जुन अर्थ आज आम के आम्र इतिहास इन इस उस उसी उसे एक एक-एक और तुम और मैं कनु कभी कर करती कहा है का कि तुम कि मैं कितनी बार की तरह कुछ के लिए केवल को कोई कौन है क्या क्यों क्षण खड़े गया है गयी हूँ गये चारों ओर जब तुमने जा जाती जाना जिसे जिस्म जो तक तन तुम मेरे तुमने तुमसे तुम्हारे तुम्हें तो तो मैं था थी दिन दिया दो नहीं नहीं आयी नहीं है ने पगडण्डी पर पर प्यार प्रिय फिर बन बार-बार बौर भय भर भी माँग मात्र मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं हूँ मैंने यमुना यह या ये रही हूँ रहे हैं लगता है लिया ले लो वह शब्द सब समझ समय समुद्र सा साँवरे सारे सिर्फ़ सुनो सृष्टि से सो ही हुआ हुई हुए हूँ और है और है कि होकर