Prasāda SāhityaNāgarīpracāriṇī Sabhā, 1991 - 280 pages |
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... या दोष हमारा प्रयना निश्चय नहीं , दूसरे के निश्चय का निश्चय या अनुमान है , जो हम बिना किसी प्रकार का प्रमाण पाए केवल अपने प्राचरण या ...
... या दोष हमारा प्रयना निश्चय नहीं , दूसरे के निश्चय का निश्चय या अनुमान है , जो हम बिना किसी प्रकार का प्रमाण पाए केवल अपने प्राचरण या ...
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... या परगत , प्रथवा प्रत्यक्ष या परोक्ष भावानुभूति नहीं है बल्कि भाव का साधारणीकृत प्रास्वाद है ' प्रास्वादाश्वादरस " अर्थात् जिसका ...
... या परगत , प्रथवा प्रत्यक्ष या परोक्ष भावानुभूति नहीं है बल्कि भाव का साधारणीकृत प्रास्वाद है ' प्रास्वादाश्वादरस " अर्थात् जिसका ...
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... या प्रात्मा की प्रानंदावस्था है । जनदर्शन में वैराग्योत्पत्ति के दो साधन कहे गए हैं । एक तत्वज्ञान और दूसरा इष्टवियोग या प्रनिष्ट ...
... या प्रात्मा की प्रानंदावस्था है । जनदर्शन में वैराग्योत्पत्ति के दो साधन कहे गए हैं । एक तत्वज्ञान और दूसरा इष्टवियोग या प्रनिष्ट ...
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अपनी अपने इन इस इसके इसी उनका उनकी उनके उन्हें उन्होंने उस उसकी उसके उसी उसे एक एवं ऐसा और कर करता है करती करते हैं करने कवि कहा का काम कामायनी काव्य काशी किंतु किया किया है किसी की कुछ के लिये के साथ केवल को कोई क्या गई गए गया है जब जयशंकर प्रसाद जा जाता है जीवन जो डा० तक तथा तरह तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि दो दोनों द्वारा नहीं है नाटक नाटकों नारी निबंध नियति ने पर पाठ प्रकार प्रकाशित प्रति प्रसं० प्रसाद के प्रसाद जी प्रसाद जी ने प्रस्तुत प्रेमचंद प्रोर फिर बहुत बात बाद भारत भारतीय भाव भी भोर मन मनु मानव मैं मोर यह यहाँ या रचना रहा रही रहे लज्जा वह वे श्रद्धा संस्करण सकता है सब समय साहित्य से हिंदी ही हुआ हुई हुए है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते होने