Ṭhaṇḍa lohā tathā anya kavitāem̐ |
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अँधियारे अगर अनजान अपनी अपने अब अभी अमृत आज आत्मा इन इस उदास उन उस एक और क़दम कभी कर करता करो कवि कविता कहीं का कि कितनी किस किसी की कुछ के कैसे कोई कौन क्या गंगा गया गयी गये गोद में छाया जब जा जाता है जाती जाते जाने जिन ज़िन्दगी जिस जीवन जो ज्यों ठंडा लोहा तक तुम को तुम ने तुम्हारी तो था थी दर्द दिया दुनिया दूर दे दो नये नहीं ने पर पलकों पागल पाती पास पुरवाई प्यार प्यास प्राण फागुन फिर फूल फूलों बन बहुत बाँहों बात बादल भी भूल मगर मन मर मुझ को मुझे में मेघदूत मेरा मेरी मेरे मैं मैं ने मौत यह या ये रहा है रही रहे लेकिन लोहा वह विश्वास वे सत्य सपने सपनों सब साँसें साथ सी से स्वर्ग हम हर ही हुआ हुई हुए हूँ हृदय हैं हो होगा होठ होठों