Samānāntara |
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अज्ञेय अधिक अनुभव अपनी अपने आज इन इस इसी उनकी उनके उन्हें उस उसका उसकी उसके उसी उसे एक ऐसा ऐसी ओर कम कर करता है करती करते करने कवि कविता के कहानी कहीं का कारण काव्य किन्तु किया किसी की कुछ के प्रति के लिए के साथ केवल को कोई क्या क्योंकि चेतना जब जहाँ जाता है जाती जीवन जैसे जो तक तरह तो था थी दूसरी दूसरे दृष्टि देता है देती दोनों नहीं है निराला ने पर परिवेश पहले प्रकार प्रतीत फिर बल्कि बहुत बात बाद भाषा भी भीतर मात्र मानवीय मुझे में में भी मैं यथार्थ यह यहाँ यही या रचना रहा राम रूप वह विकास विशिष्ट वे व्यक्ति व्यक्तित्व शब्दों संवेदना संशय सकता है सकती सर्जनात्मक सार्थक से स्तर स्वयं हम हमारी हमारे हमें हिन्दी ही ही नहीं हुआ हुई हुए हूँ है और है कि है जो हैं हो होगा होता है होती होने