MachalīgharaBhāratī Bhaṇḍāra, 1966 - 131 pages |
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अपनी अपने अब भी अभी आँखें आँखों आकाश आज आवाज़ इन इस तरह उस उसके उसी ऊपर एक कभी करता करते हैं करने कहाँ का किया की तरह कुछ के बाद के लिए के साथ को कोई क्या क्यों क्योंकि गया है गयी गये चले चारो ओर जब जहाँ जा जाता है जाती जाते जादूगर जैसे जो तक तब तुम तुमने तुम्हारे तुम्हें तो था थी थे दिन दिया दे देखा न जाने नदी नहीं है पर पहले पानी पार पास फिर बन बहुत बार बारिश बाहर भर भी भी नहीं भीतर मुझे में मेरी मेरे मैं मैंने यह यही या याद ये रहा है रही रहे रात लेकिन लोग लौट वह वहाँ वही वापस वाले वे शायद सकते समय समुद्र सिर्फ़ सी से हम हमने हर हवा हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ है और है कि है जो हैं होगा होता है होती મીન મીમ