Ghara bane ghare tuteRadhakrshna, 1979 - 133 pages |
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अपना अपनी अपने अब आँखों आज इस उनके उस उसका उसकी उसके उसने उसे ऊपर एक और फिर कभी कभी-कभी कर करता था करती करते करने कह कहा कहीं का काम किया किसी की ओर कुछ के लिए के साथ कोई कौशल्या क्या खूबचन्द गया गये घर चाय चुपचाप जग्गी जब जा जाता जाती जाने जो तू तो था और था कि थी और थीं थे थे और दिन दिया दुकान दूर देख देखकर देखा देबू को देबू ने दोनों धीरजसिंह नल नहीं नहीं थी नहीं है नानकचन्द पर परन्तु पहले प्रेस फिर बस्ती बहुत बात बातें बार बाहर भी भोला मन मानो मुझे में मैं यह यहाँ या रहा था रही थी रहे थे रात को रामदयाल लगा लगी लाली लेकिन लोगों वह वाले विषय में वे शायद सकता सड़क सब सुन्दर सुभागी से स्वर हाथ ही हुआ हुई हुए हुकम हूँ है हैं हो गयी होता होने