Bhūkha ke tīna dina

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Viplava Kāryālaya, 1968 - Short stories, Hindi - 150 pages

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9
Section 2
47
Section 3
57

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अधिक अनुभव अपनी अपने अब आंखें आप आया इस उनके उन्हें उस उसकी उसके उसने उसे एक ऐसी और कमरे कर करने कह कहा का काम कारण कि किया किसी की ओर कुछ कुमार के लिये के साथ के सामने कैसे को कोई क्या गया था गयी गये गाड़ी घर चल चाय जा जाते जाने जी तक तुम तुम्हारे तुम्हें तो थी थे दिन दिया दी दे देख देखा देने दो दोनों नन्दन नन्दन को नन्दन ने नहीं नहीं है पर परन्तु पहले पापा पिता प्रकट फिर बस बहुत बात बाद बोला भर भी मंत्री जी मकान मन मिश्रा मुझे में मैं यह यहां या रख रहा था रहे थे रिक्शा लखनऊ लगा लाल लाहौर लिया ली ले लोग लोगों वह सकता सदानन्द सब समय समीप सम्बल साहब सिंह ने सिगरेट सिपाही से स्वयं स्वर हम हाथ ही हुआ हूं हेमा ने है हैं हो गया होगा होने

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