Patiṃvarā: gīti-nāṭya |
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अपनी अपने अब आज आप आशा इन्द्र इलाहाबाद इस उर उस उसका उसकी उसके उसे एक ऐसा और कठिन कभी करता करती करते कहाँ का काम कामदेव कार्य किया किसी की की ओर कुछ कुबेर के कैसे को कोई कौन क्या क्यों खो गई गया छवि जग में जगत जब जया जल जाता जाती है जाते जान जिसके जो ज्यों तक तप तारक तुम तू तो दिव्य दे देख देता देह दोनों नहीं नाम निज नित नित्य नीलिमा ने पटना पर पा पार्वती प्रकट प्राप्त प्रेम फिर बन बना बाण बात बिना ब्रह्मचारी ब्रह्मा भर भी मन मेरी मेरे मैं मोह यदि यह ये रति रहा रही रहे रूप रूप का ले वरुण वह विजया विश्व वे शंकर शक्ति शम्भु शिव सकता सखि सखियों सत्य सदा सब सहज साथ सिर सुन्दर सृष्टि से हम हाथ हिमालय ही हुआ हुई हुए हृदय है है और हैं हो कर होता होती