Asalī Rānī Sāraṅgā kā gītaŚrīlokanātha Pustakālaya, 1970 - 80 pages |
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०-४५ अपनी अपने अब आई आगे इतना इधर इन्द्र इस उस उसका उसकी उसके उसने उसी उसे एक दिन ऐसा और कर करने कह कहने लगी कहा कि का का नाम का हाल कि किया की की बात कुछ के के पास के लिये को कोई क्या गई गये गिलन्द गीत गुरुजी घर चल जब जवाब जा जी जो तक तब तरह तुम तू तो था थी थे दिया दूर देख देखा दो दोनों धीरू नगर नहीं ने ने कहा पड़ा पर परन्तु पहुंचा पानी प्रकार प्राण प्रेम फिर बचन बड़ी बड़े बन बहुत बात सुनकर बोला बोली भाग भी मन मारुत मुझे में मैं मोर यह यहां रम्भा रहा था रही रहे राजा रात राधा लगा लगे लिया ले वह वहां से शिव श्याम सदावृक्ष सदावृक्ष को सब समय सारंगा सारङ्गा साहूकार सुन सूरजभान से हम हाथ ही हुआ हुई हुए है हैं हो गया हो प्यारे