Śrī Guru Gobindasiṃha

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Rājadhānī Granthāgāra, 1967 - 209 pages

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अपने अब अभय आज आप इस उठा एक और कभी कर करो कहानी कहीं का काल काव्य कि किया की कुछ के को कौन क्या खाँ गई गए गया गये गुरु गोविन्द ग्रन्थ चला चली चले जग जगत जगो जय जा जाति जीवन जो ज्वाला तक तन तुम तो था थी थे दिया दिल्ली दे देख देश दो धरम धरा धर्म धर्मं धाम नभ नव नहीं निज ने पंजाब पड़ा पड़े पथ पद पर पवन पाप प्रकाश प्रलय फिर बन बना बने बात बीच भर भाव भी भूमि मन माँ मानस में मैं यह रक्त रहा रहा था रहा है रही रही थी रहे राम रूप लगा लगे लाल लिये ले लो वक्ष वह विलास वीर वे व्योम शक्ति शाह शीश शोणित सत्य सदा सपूत सब सम सम्मुख सा साथ सिंह सिन्धु सिन्धु अर्चना करता सी से स्वदेश स्वधर्म हाथ ही हुआ हुई हुए हृदय है हैं हो होता

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