उर्वशी (Hindi Poetic Novel): Urvashi (Hindi Epic)केशी राक्षस से संत्रस्त उर्वशी अप्सरा का राजा पुरूरवा उद्धार करता है। वे एक दूसरे पर आकर्षित हैं। उर्वशी राजा के प्रणय पर मंत्रमुग्ध है। विदूषक माणवक की त्रुटी से उर्वशी का एक विशिष्ट 'प्रणयपत्र' देवी औशीनरी को हस्तगत हो जाता है। राजा उससे डाँट खा कर उसका कोप शांत करता है। उधर ..... इन्द्रसभा में आचार्य भरतमुनि द्वारा निर्देशित एक विशेष नाटक में उर्वशी 'पुरुषोत्तम विष्णु' के स्थान पर 'पुरूरवा' नाम का उच्चारण कर देती है। तब क्रोधित भरतमुनि उर्वशी को शाप दे देते हैं कि- 'वह पुत्रदर्शन तक मृत्युलोक में ही जीवन यापन करे।' उसी समय से उर्वशी राजा के पास रहने लगती |
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अपनी अपने अप्सरा अब अभी अम्बर अिधक आई आज आती आिलंगन इस उवर्श◌ी उस उसे ऊपर एक और कभी कर करता है करती करते करने कहाँ कहीं का की कुछ के केवल कैसे को कोई कौन क्या क्यों गई गगन गया च्यवन छोड़ जब जल जहाँ जाता जाती है जाते जाने जीवन जैसे जो तक तन तब तुम तो त्वचा था थी देख देखा देवता देह दो नर नहीं है नारी नूतन ने पर पर्कृित पर्सन्न पर्ाण पर्ाणों पर्ेम पुतर् पुरुरवा पुरुष फूलों बन बनकर भर भांित भाग भी मन महाराज मुझे में मेरी मेरे मैं यह यही या यिद ये रम्भा रहा है रही रहे रूप लगता ले वह वही वे सकती सब सभी सहजन्या सुकन्या सुख से स्वगर् स्वयं हम हाय ही हुआ हुई हुए हूँ हृदय हैं हो हों होकर होगा होता है होती िक िकंतु िकतना िकतनी िकस िकसी िचतर्लेखा िजस िजसकी िजसे िफर िलए