Ek Plate Sailabसाहस और बेबाकबयानी के कारण मन्नू भंडारी ने हिन्दी कथा-जगत् में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। नैतिक-अनैतिक से परे यथार्थ को निर्द्वन्द्व निगाहों से देखना उनके कथ्य और उनकी कहन को हमेशा नया और आधुनिक बनाता है। मैं हार गई, तीन निगाहों की एक तस्वीर, यही सच है और त्रिशंकु संग्रहों की कहानियाँ उनकी सतत जागरूक, सक्रिय विकासशीलता को रेखांकित करती हैं। आलोचकों और पाठकों ने मन्नूजी की जिन विशेषताओं को स्वीकार किया है, वे हैं उनकी सीधी-साफ भाषा, शैली का सरल और आत्मीय अंदाज, सधा-सुथरा शिल्प और कहानी के माध्यम से जीवन के किसी स्पन्दित क्षण को पकड़ना। कहना न होगा कि इस संग्रह में शामिल सभी कहानियाँ इन विशेषताओं का निर्वाह करती हैं। एक प्लेट सैलाब, बंद दराजों के साथ, सजा, नई नौकरीदृये सभी कहानियाँ अक्सर चर्चा में रही हैं और इनमें मन्नूजी की कला निश्चय ही एक नया मोड़ लेती हैदृजटिल और गहरी सच्चाइयों के साहसपूर्ण साक्षात्कार का प्रयत्न करती है। |
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अतुल अपना अपनी अपने अपने को अब आई आज आया इस उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक ऐसा और कभी कम्मो कर करके करती करने कह कहा कहीं का काम किया किसी की की ओर कुंज कुछ कुन्दन के लिए के साथ केवल को कोई क्या क्यों गई गए गया घर में चली जब जा जाता जाती जाने जैसे जो तक तब तरह तुम तुम्हें तो था कि थीं थे दिन दिया दे देखा दो दोनों नन्दन ने पर पहले पास फिर बड़ी बस बहुत बात बाद बाहर बिना बिन्नी बीच भी नहीं भीतर मन में माँ मुझे में ही मेरे मैं यह यहाँ या यों रहा था रहा है रही थी रहे लगता लगा लगी लिया ले लेकर वह वे शरद शायद शिवानी शिशिर सब समझ समय सामने सारी सारे सुषमा से स्वर हर हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ है कि हैं हो होता