Gajānana Mādhava Muktibodha: jīvana aura kāvya

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Rājeśa Prakāśana, 1976 - Hindi poetry - 110 pages
On the life and works of Gajanan Madhav Muktibodh, 1917-1965, Hindi poet.

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Contents

विषय प्रवेश E१२
9
परिस्थिथियाँ एवं जीवनदर्शन २५४०
32
तारसप्तक ४५
39

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अज्ञेय अधिक अनुभव अपनी अपने आज आदि इन इस इस प्रकार इसी उनका उनकी उनके उन्हें उन्होंने उस उसकी उसके उसे एक एवं कभी कर करता है करती करते हैं करने कवि कविता के कविता में कविताएँ का का मुँह टेढ़ा कारण काव्य किन्तु किया है किसी कुछ के प्रति के रूप में के लिए के साथ केवल को कोई गई गए गजानन माधव मुक्तिबोध गया चाँद चाँद का मुँह चेतना छन्द जाती है जीवन के जो डॉ० तक तथा तरह तारसप्तक तो था थी थे दिया दृष्टि द्वारा नयी नये नहीं नहीं है ने पर पृ० प्रकाशन प्रयोग बहुत बिम्ब बिम्बों भारत भाव भाषा भी माधव मानव मुँह टेढ़ा है मुक्तिबोध की मैं यह या युग ये रस रहे वर्ग वह वे व्यक्ति व्यक्तित्व शब्दों श्री संघर्ष सन् समय समाज से स्थिति हम हिन्दी ही हुआ हुई हुए हूँ है और है कि हैं हो होता है होती होने

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