Gommaṭasāra: Śrīmatkeśavaṇṇaviracita Karṇāṭakavr̥tti, Saṃskr̥ta ṭīkā Jīvatattvapradīpikā, Hindī anuvāda, tathā prastāvanā sahita, Volume 1Bhāratīya Jñānapīṭha, 1978 - Act (Philosophy) |
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० ० १० १६ ४ ४ ४ ४ है अत अथ अथवा अधिक अपने अर्थात् अवगाहन आगे आदि इति इन इस प्रकार उत्कृष्ट उत्पन्न उनके उस उसका उसके उससे उसे एक ऐसा और कथन कम कमसे करके करते करना करनेपर कहते हैं कहा है का कालका किन्तु की के क्योंकि गुणा चार छे जघन्य जानना जीव जैसे जो त त तथा तरह ति तीन ते तो था दो द्वारा नहीं नहीं है नाम पर परिणाम पुन प्र प्रत्येक प्रथम प्रमाण प्राप्त भवति भवन्ति भाग भी भू भेद में मैं यह यहाँ या ये रा राशि रूप लिए लेकर वा वि विशेष वे संख्या संस्कृत सब समय से सो सौ स्थान ही हुआ हुई हुए है और है वह है है हो होता है होती होते हैं होनेसे