Kabīra-kāvya meṃ kālabodha

Front Cover
Rādhākr̥shṇa, 2001 - Time in literature - 263 pages
Concept of time in the works of Kabir, 15th cent. Hindi devotional poet; a study.

From inside the book

Contents

Section 1
vii
Section 2
ix
Section 3
13
Copyright

10 other sections not shown

Common terms and phrases

अपनी अपने अहंकार आदि इस इसलिए ईश्वर उनकी उनके उसे एक एवं ओर कबीर ने कर करके करता है करती करते हुए करते हैं करना करने का कर्मकांड कवि कविता कहते कहा का काल की काव्य किया किया है किसी कुछ के अनुसार के कारण के रूप में के लिए को कोई कौ अंग गति ग्र चाहिए जन्म जब जा जाता है जीव जीवन की जो ज्ञान डॉ तक तथा तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि दो द्वारा धर्म नहीं है पद पर पृ प्रकार प्रेम भक्ति भय भारत भावना भाषा भी मन मनुष्य मनुष्य को मानव माया मुक्त मृत्यु के यह रहता है राम वह वही वे व्यक्ति शरीर श्यामसुन्दर दास सं संसार सकता है सत्य सन्त सब सभी समय समाज समाज के समाज में साथ साधना सामाजिक साहित्य से स्पष्ट हिन्दी साहित्य ही हुआ है और है कि हो होकर होता है होती होते होने

Bibliographic information