Kabīra-kāvya meṃ kālabodhaConcept of time in the works of Kabir, 15th cent. Hindi devotional poet; a study. |
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अपनी अपने अहंकार आदि इस इसलिए ईश्वर उनकी उनके उसे एक एवं ओर कबीर ने कर करके करता है करती करते हुए करते हैं करना करने का कर्मकांड कवि कविता कहते कहा का काल की काव्य किया किया है किसी कुछ के अनुसार के कारण के रूप में के लिए को कोई कौ अंग गति ग्र चाहिए जन्म जब जा जाता है जीव जीवन की जो ज्ञान डॉ तक तथा तो था थी थे दर्शन दिया दृष्टि दो द्वारा धर्म नहीं है पद पर पृ प्रकार प्रेम भक्ति भय भारत भावना भाषा भी मन मनुष्य मनुष्य को मानव माया मुक्त मृत्यु के यह रहता है राम वह वही वे व्यक्ति शरीर श्यामसुन्दर दास सं संसार सकता है सत्य सन्त सब सभी समय समाज समाज के समाज में साथ साधना सामाजिक साहित्य से स्पष्ट हिन्दी साहित्य ही हुआ है और है कि हो होकर होता है होती होते होने