Parimalमहाकवि ‘निराला’ की युगांतरकारी कविताओं का अति विशिष्ट और सुविख्यात संग्रह है-परिमल! इसी में है तुम और मैं, तरंगो के प्रति, ध्वनि, विधवा,भिक्षुक,संध्या-सुन्दरी, जूही की कलि, बदल-राग, जागो फिर एक बार-जैसी श्रेष्ठ कविताएँ, जो समय के वृक्ष पर अपनी अमिट लकीर खिंच चुकी हैं! परिमल में छाया-युग और प्रगति-युग अपनी सीमाएँ भूलकर मनो परस्पर एकाकार हो गए हैं! इसमें दो-दो काव्य-युगों की गंगा-जमनी छटा है, दो-दो भावधाराओं का सहज्मुक्त विलास है! |
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stupendous!! work by great suryakant Tripathi "Nirala" ji , i salute to him always
Contents
Section 1 | 3 |
Section 2 | 49 |
Section 3 | 64 |
Section 4 | 72 |
Section 5 | 76 |
Section 6 | 88 |
Section 7 | 122 |
Section 8 | 133 |
Section 9 | 134 |
Section 10 | 135 |
Section 11 | 136 |
Section 12 | 137 |
Section 13 | 138 |
Section 14 | 154 |
Section 15 | 156 |
Section 16 | 199 |
Common terms and phrases
अतीत अनन्त अपना अपनी अपने अब अभी आज आया आयी आये इस उन उर उस उसके उसे एक एक बार एक ही ओर और कभी कर करता करती करते कविता कह कहाँ कहीं का कि कितने किन्तु किया किस किसी की कुछ के लिए केवल को कोई कोमल क्या क्यों गति गया गयी गये छन्द जग जब जाता जाती जाते जाने जीवन जैसे जो तक तब तरह तुम तुम्हारे तुम्हें तू तो था थी थे दिन दूर देख दो द्वार नयन नयनों नव नहीं निज ने पथ पर पार प्रकार प्रकृति प्रथम प्राण प्रिय प्रेम फिर भर भाव भाषा भी मन मुक्त मुख मुझे मृदु में मेरा मेरे मैं मौन यदि यह यहाँ यही या ये यौवन रहा है रही रूप ले वन वह विश्व वीर वे संसार सदा सब साथ साहित्य सुख सुन्दर सृष्टि से हाय हिन्दी ही हुआ हुई हुए हूँ हृदय है हैं हो होगा होता