Path Sampadan Ke SidhantLokbharti Prakashan, Sep 1, 2008 - 157 pages |
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अतः अन्य अपनी अपने अर्थ आदि इन इस प्रकार इसके इसी उनके उन्होंने उल्लेख उस उसके उसे एक एवं कर करके करते करना करने का कार्य काल किया है किसी की प्रतियों कुछ के आधार पर के कारण के पाठ के लिए के लिये को कोई गया गुप्त ग्रंथ ग्रंथों चाहिए जब जा सकता है जाता है जाती जाय जो ज्ञान डॉ० तक तथा तो था थी थे दिया दृष्टि दो दोनों द्वारा नहीं नागरी निर्धारण ने पाठ की पाठालोचक पाठों प्रकार की प्रति प्रतियाँ प्रतियों में प्रतिलिपि प्रतिलिपिकार प्रयोग प्रस्तुत प्राचीन प्राप्त बहुत भाषा भी मिलता मूल पाठ में भी यदि यह या ये रचना लिपि लेखक लेखन वह विभिन्न वे वैज्ञानिक शब्द शाखा शाखाओं संबंध संवत् सभी समय सम्पादन सम्बन्ध साथ सामग्री सुधार से स्थान हस्तलिखित हिन्दी ही हुआ हुई हुए है और है कि हैं हो हों होगा होता है होती होते होने