Tarapathतारापथ का यह परिवर्धित संस्करण पंतजी के समग्र काव्य साहित्य का प्रतिनिधित्व करता है । वीणा से लेकर अधुनातन कृति संक्रांति तक के काव्य संग्रहों से उनकी रचनाओं का सुरुचिपूर्ण चयन इसमें प्रस्तुत किया गया है । इस संकलन की विशेषता यह है कि इसमें पंतजी की नवीनतम कृतियों का प्रतिनिधित्व पाठकों को मिलेगा । पन्तजी ने इस युग को एक 'महासंक्रान्ति युग' कहा है । इस महासंक्रान्ति काल की कविता में आस्था और लोकमंगल को प्रतिष्ठित करना किसी भी साधारण प्रतिभा और जीवन-दृष्टि के कवि के बूते के बाहर की बात है । जबकि विघटन, विश्रृंखलता, नैतिक मूल्यों का हास चारों ओर दिखाई पड़ रहा है, उसमें महाकवि पन्त का यह स्वप्न ('मुझे स्वप्न दो, मुझे स्वप्न दो') एक महान जीवन और विराट आस्था की परिकल्पना करता है । यही वह संदेश है, जो समस्त पन्त-काव्य के अन्दर-ही-अन्दर प्रवाहित होता हुआ हमें मिलता है । उनका समस्त काव्य अन्तर्मुखता का काव्य न होकर आत्मोत्कर्ष का काव्य है । यह आत्मोत्कर्ष अपनी समग्र संरचना में एक सार्वभौमिक शुभेच्छा तक ले जाता है । इसीलिए उनका काव्य अतीतोम्मुख न होकर वर्तमान के फलक पर भविष्योन्मुखी काव्य है । यह सार्वभौमिक शुभेच्छा ही वह तत्व है, जिसके भीतर से कवि पन्त ने विश्व-मानव और नव-मानव की परिकल्पना को अपनी कविता में सार्थक किया है । अपनी सम्पूर्ण काव्य-सम्पदा के भीतर से उन्होंने एक नये और निजी अध्यात्म की रचना की है । यह अध्यात्म अपनी मंगलकामना में निजी होते हुए भी 'स्व' की भावना से पूर्णतया मुक्त है । |
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Contents
Section 1 | 33 |
Section 2 | 35 |
Section 3 | 41 |
Section 4 | 42 |
Section 5 | 44 |
Section 6 | 52 |
Section 7 | 78 |
Section 8 | 81 |
Section 11 | 93 |
Section 12 | 95 |
Section 13 | 108 |
Section 14 | 128 |
Section 15 | 144 |
Section 16 | 164 |
Section 17 | 166 |
Section 18 | 182 |
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Common terms and phrases
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