Kahāniyāṃ: Ragka-ragka duniyāRādhākr̥shṇa Prakāśana, 1967 |
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अच्छा अपना अपनी अपने अब अभी आँखें आज आवाज़ इस उन उनके उन्हें उन्होंने उस उसका उसकी उसके उसने उससे उसी उसे एक ओर और कभी कमरे में कर करती करते करने कहा का किया किसी की की तरह कुछ कुल्लू के पास के लिए के साथ को कोई क्या क्यों गई गए गयी घर चाय जब जा जाकर जाता जाती जाने जैसे जो ठीक तक तरफ तरह तुम तो था कि थीं थे दिन दिया दी दे देखा देर दो नहीं नीचे ने पर पहले पूछा फिर बस बहुत बात बाद बार बाहर बोली भाटिया भी मगर मन मिस पाल मिस्टर भण्डारी मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने यह यहाँ या रहा था रही थी रही है रहे लगता लगा लगी लिया ले लोग लोगों वह वहाँ वे सकता सब समय सामने से हम हर हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ है हैं हो गया होता