Hindī gītināṭya

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Bhāratīya Jñānapīṭha Prakāśana, 1964 - Hindi drama - 164 pages

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Section 1
3
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8
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17

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अथवा अधिक अन्य अपनी अपने अपेक्षा अभिव्यक्ति अश्वत्थामा आदि आधुनिक आवश्यक इन इस इसका इसके इसमें इसलिए उनका उनकी उनके उसका उसकी उसके उसे एक एवं ओर कर करता है करती करना करनेके कविता कहा का कारण काव्य किन्तु किया गया है किसी की कुछ के को कोई गया है गयी गये गीतिनाट्य गीतिनाट्यमें चाहिए चित्रण जब जा सकता है जाता है जाती जीवन जीवनकी जो डॉ० तक तथा तो था दिखाई दिया दृष्टिसे द्वारा धर्मवीर भारती ध्यान नहीं नहीं है नाटक नाटककी नाटकमें नाटकीय नाट्य पड़ता पर पात्र पात्रोंके प्रकार प्रतीक प्रभाव प्रयोग प्रस्तुत बहुत बाह्य भाषा भी माध्यम मानसिक मुक्त में यह या ये योजना रहता है रहे रूप रूपमें रेडियो लिए लिखे वह विचार विशेष विश्वामित्र वे संघर्ष सकती सफल समय सम्बन्ध साथ ही सामने सृष्टि से हिन्दी ही हुई हुए है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते Drama

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