Patthara ke sanama

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Subodha Pôkeṭ Buksa, 1966 - Hindi fiction - 110 pages

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Contents

Section 1
29
Section 2
37
Section 3
45
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अपना अपनी अपने अब आँखें आँखों आज आप इस उठा उठी उन्हें उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक और और प्रतिमा और वह कमरे कर करते करने कह कहने कहा का कि किया किसी की ओर कुछ के लिए के लिये के साथ को कोई क्या क्यों क्षण-भर खड़ा गई गये गीत चली चाय चेहरे जब जा रही जाने जो डाइरेक्टर तक तुम तुमने तुम्हारे तुम्हें तू तो था और थीं थे दिया दी दे देखा दो दोनों नहीं नाम पड़ा पड़ी पर परन्तु पास प्यार प्रतिमा के प्रेम फिर बड़ी बहुत बात बिल्ली बोला भर भी मधुकर ने माँ मानो मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने मोती यह रचना रह रहा था रहा है रही थी रहे लगा लगी ललिता लिया वह वे शरद ने शरीर सकता सकती सामने साहब से स्वर हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ हृदय है है और हैं हो गया

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