Vikshiptā: upanyāsa

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Dhāra Prakāśana, 1975 - Hindi fiction - 129 pages

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Contents

Section 1
23
Section 2
31
Section 3
36

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अपनी अपने अब आज आप आया आयी आवाज इस उन्हें उस उसकी उसके उसने उसे एक ऐसा और कभी कमरे कर करने कल कह कहती कहाँ कहीं का किसी की की तरह कुछ के के लिए कैसे को कोई क्या क्यों गयी गये घर चली जरा जा जाने जैसे जो तक तुम तुम्हें तू तो तो मैं था कि थी कि थीं थे दिखायी दिन दिया देखा देर दो नवाब नहीं है ने पर पलंग पहले पानी पास फिर बन्द बहुत बाँदी बात बाहर बेटी बोली भी मन माँ माँ ने मालूम मुँह मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने कहा यह यहाँ या ये रहा था रही थी रही है रहे रात लगा कि लगी ले लेकिन लोग वक्त वह वे सब समझ सहेली साथ सामने साहब सितार से हम हमारे हाथ ही नहीं हुआ हुई हुए हुजूर हूँ है कि हैं हो गया होकर होता होती

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