Hindī kahānīGranthāyana, 1978 - Short stories, Hindi |
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अपनी अपने अब आज आप आया इस उनकी उनके उन्हें उन्होंने उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक और कभी कर करते करने कह कहा कहीं का काम कि किया किसी की कुछ के लिए के साथ को कोई क्या क्यों गई गया था गयी गये घर चाय जगदीप जब जा जाता जाती जाने जी जैसे जो ठाकुर ठीक तक तब तुम तो था था कि थी थीं थे दिन दिया दी दे देखा दो नहीं नहीं है ने पर पहले पास फिर बस बहुत बात बाबू बार बाहर भर भी भी नहीं भैया मणि मन ममी माँ मुझे में मेरी मेरे मैं मैंने यह यहाँ या रहा था रही रही थी रहे थे रात राम लगता लगा लगी लगे लिया ले लेकिन लोग लोगों वह वे शायद सब समय सामने साहब से हम हर हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ है हैं हो गया होगा होता GRANTHAYAN