Dharatī kī āsa |
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अच्छा अनवर अपना अपनी अपने अब अभी अलवर अवर आँखों आँसू आज आप इस उनके उसका उसकी उसके उसे एक एवं ऐसा कभी कर करना करने का कारण काशीनाथ किया है किसी की कुछ के लिए को कोई कौन क्या क्यों गई घर चली चाहिए जब जा जाता जाती है जाती है है जाते हैं जाने जी जीवन जो ठीक तक तुम तुम्हारे तुम्हें तो था थे दिन दिया देता है देती दो दोनों धर नहीं है नाम निकल निगम निगल ने पर परन्तु पास फिर बद्रीनाथ बरामदे बात बाहर भी भूल मत माँ माधुरी मालती मोहन मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मोहन मालती यदि यह यहीं रहा है रही रहीं रहे रामबाबू लगता लगती है वह वाराणसी वे सकता सभी समय समाज साथ सुरेन्द्र से हाथ हाथों ही हुआ हुई हुए हूँ है और है कि है मोहन है है हैं हो होता है होती