Dharatī kī āsa

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Sāhitya Nikunja,Pramukha vitaraka viśvavidyālaya prakāśana, 1969 - 92 pages

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अच्छा अनवर अपना अपनी अपने अब अभी आंसू आज आप इस उनके उसका उसकी उसके उसे एक एवं ऐसा कभी कर करना करने का काम कारण काशीनाथ किया है किसी की कुछ के लिए को कोई कौन क्या क्यों गई घर चाहिए जब जा जाता है जाती जाती है जाते हैं जाने जी जीवन जो ठीक तक तुम तुम्हारे तुम्हें तो था थी थे दिन दिया दे देता है देती देर दो दोनों नहीं नहीं है नाम निकल निगहत ने पर परन्तु पास फिर बद्रीनाथ बात बाहर भी भूल मत मनुष्य माँ माधुरी मालती मुझे में मेरा मेरी मेरे मैं मैंने मोहन मोहन के यदि यह यही युद्ध रहा है रही रहे राम लगता लगती है लो वह वाराणसी विश्वास वे सकता सभी समय समाज साथ सुरेन्द्र से हम हाँ हाथ हाथों ही हुआ हुई हुए हूँ हृदय है और है कि हो गया होगा होता है होती

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