Āṅgana |
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अजित को अजित ने अपनी अपने अब आज आदमी आया आवाज इस इस तरह इसी उस उसकी उसके उसने उसी उसे एक एकदम ऐसा और कभी कर करता कह कहा का किया किसी की की ओर कुछ के लिए के साथ केशर मां कैसे कोई क्या क्यों गणित गया था गयी गये गली घर जब जया मौसी जा जाता जाती जी जैसे जो ठीक तक तब तरह तुम तू तो थी थीं थे दिन दिया दे देख देखा दो नहीं है ना पड़ा पर पहले पास फिर बटनियां बहुत बात बार बोला बोली भी भीतर मास्टर मिन्नी मुझे में मैं मोठे बुआ यह यहां यही या याद ये रहा था रहा है रही रहे रेशमा लगता है लगा लगी लिया ले लेकर लोग वह वही शायद सकता सब समझ सहोद्रा सामने सुनहरी सुरगो से हां ही ही नहीं हुआ हुई हुए हूं है कि हैं हो गया होगा होती