Śrat-pratibhā, Volume 3 |
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८८ अच्छा अच्छी अपनी अपने अब अभी आई आओ आकर आज आप आया आये इतना इन्दु इस इसके इसलिए उनकी उनके उन्हें उन्होंने उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक ऐसा ओर और कभी कर करके करती करते कह कहा कहीं काम कि किन्तु किया किसी की कुछ के कोई क्या क्यों गई गये घर चन्द्रनाथ चन्द्रनाथने चली जब जरा जा जान जो ठीक तक तब तरह तुम तुम्हारे तुम्हें तो था थी थे दिन दिया देखा देर दो धीरे नहीं है पर परन्तु पहले पास पूछा प्रकार फिर बहुत बातें बाद बार बोली भी नहीं भौजी मन मालूम मुँह मुझे में मेरा मेरे मैं मैंने यदि यह बात यहाँ या रहा है रही रहे रुपया लगा लगी लिए लिया लेकर वह वे सकता सब समय सरयू सरयूने साथ सिर से हाँ हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ है कि हैं हो गई हो गया होकर होगा होता