Ghāsa meṃ dubakā ākāśa: cunī huī kavitāem̐

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Vāṇī Prakāśana, 1994 - Hindi poetry - 182 pages
Poems selected by the author from his published collections.

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अँधेरे अगर अनन्त अन्त अपनी अपने अब आकाश आदमी इस इसी उन उन्हें उम्मीद उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक ओर कर करते करने कविता कहाँ कहीं का का घर किस किसी की तरह कुछ के पास के बाद के बीच के लिए को कोई क्या गया गयी गये गोपालगंज घर जगह जब जहाँ जा जाता है जाना जाने जायेंगे जीवन जैसे जो तक तुम तो था थी थे दिन दिनों दिया दीवार धूप नदी नहीं था नहीं है ने पत्थर पर पहले पानी पार पीछे पृथ्वी फिर बच्चे बार बिना भर भी भी नहीं मुझे में मेरी मेरे मैं मैंने यह यही या याद रह रही रहे हैं ले लोग वह वहाँ वापस वे शब्द शायद संसार सकता सच सब समय सा साथ सिर्फ सी से हम हमारा हाथ ही हुआ हुई हुए हूँ है और है कि हैं हो होगा होता होती है होने का

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