संस्कृत-कवियों के व्यक्तित्व का विकास: वाल्मीकि से पण्डितराज जगन्नाथ तक

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Saṃskr̥ta Parishad, Sāgara Viśvavidyālaya, 1976 - Poets, Sanskrit - 357 pages

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अधिक अध्ययन अनेक अपनी अपने अश्वघोष आदर्श आदि इन इस प्रकार उनका उनकी उनके उन्हें उन्होंने उसकी उसके उसे एक ओर और कर करने कल्पना कल्हण कवि कवि ने कवियों कहा का कालिदास काव्य किया है किसी की की भाँति कुछ के कारण के प्रति के लिए के लिये के समान के साथ को क्षेमेन्द्र गया गयी गये चित्रण जा जाता जीवन के जैसे जो तक तथा तो था थी थे दिया दृष्टि दोनों धर्म नहीं नहीं है ने पर पाण्डित्य पृ० प्रकृति प्रतिभा प्रेम बाण बात भवभूति भारवि भास भी मन महाभारत माघ में में भी यह या युग रघुवंश रचना रहा राजशेखर राजा राम रामायण रूप में वर्णन वह वही वाले वाल्मीकि वे व्यक्तित्व संस्कृत सकता सभी समय समाज सीता से सौन्दर्य स्वयं हर्ष ही हुआ हुई हुए हृदय है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते होने

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