Vō duniyāViplava Kāryālaya, 1956 - 127 pages |
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अधिक अपना अपनी अपने अब आदमी आप इन इस उठा उत्तर उन के उन्हें उस का उस की उस के उस ने उसके उसने उसी उसे एक और कभी कर करता करते करने का काम कारण कि किया किसी की ओर कुछ के लिए के लिये को कोई कोयला क्या क्यों गई गये घर चाय जब जब्बार जा जाता जाती जाने जीवन जो तक तुम तो थीं थे दिन दिया दी दुनिया दूसरे दे देख देखा देने दो नरदेव नहीं ने कहा पर परन्तु परिश्रम पास पूछा फिर बहुत बात भी मजदूरों मन मनुष्य माथुर मिल मिसेज सरीन में मैं यह यहाँ या रहता रहा था रही थी रहे थे रिक्शा रुपया रुपये रूप लगा लगे लिया ले लोग वर्मा वह वाली वाले वे शब्बू शरीर शीला सकता सब समय साड़ी साथ साहब सिर से हम हाथ ही हुआ हुई हुए है हैं हो गया होगा होता होने