Yaha kisakā lahū girā hai?

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Kitābaghara, 1991 - Short stories, Hindi - 168 pages

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अपना अपनी अपने अब अभी आई आज आया उनकी उनके उन्हें उन्होंने उस उसका उसकी उसके उसने उसे एक और फिर कई कभी कर दिया करता करती करते करने कहा कहीं का कि किया किसी की की ओर की तरह कुछ के लिए के साथ कैसे को कोई कोठी क्या गई गए गया था गाँव घर चमेली जब जा रहा जाता जाती जी जैसे जो तक तो था कि थीं दिन दिल्ली दी देखा देर नहीं निकल ने पंजाब पति पत्नी पर पहले पास बस बात बातें बाद बार बार-बार बाहर बेटा बेटे भाई भी माँ मुँह में में से मैं यह यहाँ यूं रह रहता रहती रहा था रहा है रही थी रहे थे रात लगता लगा लिया ले लेकिन लोग वह वाले वे वैसे श्रीमती मोहन सब सामने सिख सिखों से सोचती हर हाथ हिन्दू ही हुआ था हुई हुए है हैं हो गया होता होती

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